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भाग भाग डी.के. बोस
सुहैल की शादी जीवन की सबसे शानदार शादियों में से एक रही है। या यूं कहूं कि सबसे शानदार ही रही। इस शादी में हमने खूब मस्ती थी। अफजाल की शादी में जो कसर रह गई थी सुहैल की शादी में उसका दस गुना मजा उठाया था। कई सालों बाद एक फिर लगभग वैसा ही मौका आया। इस बार सुहैल के छोटे भाई की शादी थी। और शादी में फिर से उसी जगह जाना भी हुआ। आफिस से छुटटी ली और बारात में हल्का फुल्का नाच-कूदकर फरुखाबाद जाने के लिए बैठ गए गाड़ी में। ”ड्राइवर को रास्ता पता नहीं है, पार्टी रास्ता बताएगी। गाड़ी में बैठते ही गाड़ी के ड्राईवर के पहले शब्द ये थे।
पिछली बार की तरह इस बार दीपक और ज़ाहिद साथ में नहीं जा पाए थे। पिछले कुछ दिनों से हमें सफर के दौरान पत्ते खेलने का शौक चढ़ चुका है, इसलिए सुहैल के घर के बाहर वाली दुकान से ताश के पत्तों की दो गडिडयां भी खरीद ली जा चुकी थी।
ख़ैर जैसा की ड्राईवर पहले ही बता चुका था कि उसे रास्ता मालूम नहीं है, इसलिए हमने उसे बोल दिया था कि बारात में जा रहीं गाडि़यों के साथ ही अपनी गाड़ी रखकर चले। लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था। हम (या यूं कहें कि ड्राईवर) रास्ता भटक गए। हम तो हम दूल्हा भी हमसे अगली गाड़ी में ही था। यानि जिसकी शादी वो भी गलत ट्रैक पर। रास्ता तो भटक ही गए थे। भूख भी जोरों की लगी थी। गजरौला के एक ढाबे पर गाड़ी रुकवाई और कुछ खाना खाया। यहां से चलते हुए दोनों गाडि़यों के ड्राईवरों ने आपस में कुछ बात की और हमें बताया कि दूसरी गाडी के ड्राईवर को रास्ता मालूम है और वो हमें हमारी मंजिल तक पहुंचा देगा। अपने गाड़ी के ड्राईवर पर से तो भरोसा उठ चुका था। अब दूसरी गाड़ी के ड्राईवर को तारणहार मानकर आगे चले जा रहे थे। ड्राईवर को जितनी गालियां दी जाएं कम। और बकचो….. हमारे अफज़ाल से भी बड़ा। उसके मुताबिक शायद ही कोई ऐसी होगी जो उसने न चलाई हो। ”गाड़ी तो मैं भाई बस षौक में चला रिया हूं। वरना अपने तो बिरयानी के डेग (एक तरह का बड़ा बर्तन जिन्हें खासतौर पर मांसाहारी खाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है) के ठिये लगते हैं। वो भी एक नहीं 6, ख़ुदा ने चाही तो अगल्ले साल 4 ठिये और लगा लूआं। भाई जान आप जरुर खाने आना।
भटक जाने की वजह से पत्ते खेलने का भी मन नहीं कर रहा था। या फिर दीपक के न होने की वजह से भी पत्तों में दिलचस्पी कम थी। वो हर खेल पूरा दिल लगाकर खेलता है। यहां उसके ना होने की वजह से ज्यादा खेलने का मन भी नहीं किया। रास्ता तो हम भूले-ही-भूले ड्राईवर का नींद से भी उसका बुरा हाल था। पता नहीं ऊपर वाले ने शायद उसे हमें मारने के लिए भेजा था। दो बार तो उसने हमें जीवनदान ही दिया। अगर नानू आगे की सीट पर ना बैठा होता तो शायद न तो मैं ये किस्सा लिख पाता और न ही शायद आप लोग इसे पढ़ रहे होते।
जिस-जिस रास्ते पर हम चले, बस यही मान कर चले कि ये ही सही रास्ता है और यही रास्ता हमें फरुखाबाद पहुंचा देगा। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। हमने जंगल देखा, झाड़ देखा, बकचो….. का पहाड़ देखा। क्या रह गया था अब देखने को। मौत को करीब से देख लिया था। एक नहीं दो नहीं तीन बार। दरअसल इस तीसरी घटना के चलते ही मैं ये अनुभव साझा कर रहा हूं।
साल 2009 में जब मैं कुरुक्षेत्र में था, मैंने वहां रिकार्ड तोड़ कोहरा देखा। इतना कोहरा कि अगर कोई किसी को थप्पड़ मार कर भाग जाए तो पिटने वाला इंसान पीटने वाले को पकड़ नहीं सकता। लेकिन यहां नवंबर के महीने में उत्तर प्रदेश में कुरुक्षेत्र के कोहरे से दोगुना कोहरा देखा। यहां कि स्थिति ऐसी थी जिसका मैं उदाहरण भी नहीं दे सकता।
हुआं यूं कि हम रास्ता तो भटक ही चुके थे। ऊपर से इतना कोहरा कि सामने का देख पाना लगभग नामुमकिन था। लेकिन ऐसे सूनसान इलाके में गाड़ी को रोकना समझदारी नहीं थी और बारात सही समय से पहुंचे इसलिए हम कोहरे की बिना परवाह किए चलते चले जा रहे थे। रात का समय था और हमारी गाड़ी खेत या जंगल कहां जा रहीं थी ये हमें क्या गाड़ी के ड्राईवर को भी मालूम नहीं था। जैसे-जैसे रात बढ़ती गई कोहरे ने फिज़ा को अपने आग़ोश में लेना शुरू कर दिया। अब गाड़ी चला पाना दुनिया के किसी भी ड्राईवर के बूते से बाहर की बात थी। हमारी दोनों ही गाडि़या क्योंकि साथ में चल रही थीं इसलिए हमने कोहरा छंटने के बाद गाड़ी आगे चलाने का फैसला लिया। एक गांव जहां कुछ मकान से दिख रहे थे में गाडि़या रोक दीं। इतने में ही पीछे से ही एक और गाड़ी हमारी गाड़ी के साथ लगकर खड़ी हो गई। ध्यान से देखने पर पता चल रहा था कि उस गाड़ी में एक पूरा परिवार बैठा है। जिसमें औरतें और बच्चे भी थे। यहां का सूनसान माहौल देखकर वो गाड़ी तो चल पड़ी। लेकिन हम गाड़ी में बैठे हुए ही सुस्ता रहे थे। अब सभी को नींद आ रही थी। आंखें बंद की ही थी गाड़ी के शीशों को चीरती हुई टार्च की रोशनी हमारे चेहरों पर पड़नी शुरू हो गई। कुछ ही देर में बहुत सारे लोगों के तेज आवाज़ में बात करने की आवाजें और सरियों और लाठियों की आवाजों से पूरा माहौल एक दम बदल गया। नींद तो सबकी उड़ चुकी थी। लेकिन सुहैल इस सब से अंजान अभी भी सोया हुआ था। जब वो उठा तो उसे अंधाधुंध गालियां पड़नी शुरू हो गई। दरअसल उसे नहीं पता था कि वहां क्या चल रहा है। और जैसे ही वो उठा सभी ने एक आवाज में कहा कि दूसरी गाड़ी में बैठे लोगों को फोन कर फटाफट वहां से गाड़ी भगाने के लिए कहे । लेकिन जैसे ही उसने काल किया मोबाइल की लाईट जल गई और गाड़ी के अंदर टार्च की रोशनी पड़नी और तेज हो गई। अब टार्च की रोशनी गाड़ी में बैठे लगभग हर बंदे के चेहरे पर एक-एक कर मारी जा रही थी। इतना ही नहीं गांव में से चार या पांच लोग लालटेन लेकर आए और गाड़ी के पास आकर ही पल-भर में गायब भी हो गए। पास में घनी झाडि़यां थी। हमें लग रहा था कि वो लोग इन झाडि़यों में छुप गए हैं और अपने साथियों को इशारा कर हमारा बैंड बजावाएंगे। गाड़ी में बैठे सभी लोगों के दिल की धड़कने बढ़ चुकी थीं। डर के मारे सबका बुरा हाल था। कौन किसको क्या बोल रहा था ये अब याद नहीं। इतना याद है कि सब एक-दूसरे पर चिल्ला रहे थे। ‘तू ये कर और ये न कर वाली स्थिति पैदा हो चुकी थी। नसीहतों का दौर भी शुरू हो गया था। एक दूसरे को गालियां पड़ रही थीं। सब की मां बहने सार्वजानिक हो गई थी। सब गफलत में थे कि अब क्या करें। इतना सब देखकर हमारे क्या किसी के भी होश उड़ने लाज़मी थे। हमने आव देखा न ताव भरे कोहरे में गाड़ी दौड़ा दी।
मौत आने वाली थी या नहीं ये तो ऊपर वाला ही जाने। लेकिन शायद हमने मौत को पास से देखा। मौत (ड्राईवर) से लड़े भी। इस पूरे घटनाक्रम में हम सबसे ज्यादा डरे भी तो उस ड्राईवर की ही वजह से। उसका चिल्लाना। उफ्फ…….।
अब गाड़ी कच्चे-पक्के, टूटे-फूटे रास्ते पर चली जा रही थी। कहां जा रही थी ये अभी भी नहीं पता था। डूबते को तिनके का सहारा। इस कहावत का इससे सार्थक उदाहरण मैंने कभी नहीं देखा था। वहां से भागने के बाद हमें एक हल्की मध्धम रोषनी दिखाई दी। हम उसी के पीछे चलते चले गए। सोच रहे थे कि शायद वो एक स्कूटर या मोटर साइकिल है। लेकिन पास जाकर देखा कि एक ट्रैक्टर के पीछे एक फाग लाईट लगी थी (दूर से देखा तो अंडे उबल रहे थे, पास जाकर देखा तो गंजे उछल रहे थे)। ऊपर वाले ने यकीनन उसे हमारे लिए ही भेजा था। उस लार्इट के जरिए हमने लगभग 2 घंटे का रास्ता पार किया। यहां किलोमीटर नहीं बता सकता क्योंकि ये मुझे भी मालूम नहीं।
गाड़ी में अफज़ाल हो, और उस पर तवज्जो न दी जाए। ऐसा नहीं हो सकता। अफज़ाल ने हमेशा कुछ हटकर ही काम किया है। हमेशा। उल्टी और अन्य बिमारीयों से ग्रस्त अफज़ाल उर्फ बाबा उर्फ मियां मलंग शाह और भी न जाने क्या क्या। बस एक बार स्कोर्पियों पर हाथ साफ करना चाहता था। ये उसकी ड्रीम कार है। बाबा का ये सपना पूरा होने जा रही रहा था। तभी बाबा से सपने के महल पर नानू ने पत्थर दे मारा। सपना चाहे कांच का हो या ईट का अगर नानू ने पत्थर मारा तो चकनाचूर जरुर हो जाएगा। ड्राईवर की नींद को देखते हुए बाबा ने गाड़ी की कमान संभालने की कोशिश की ही थी कि नानू ने बाबा को सीट से हटा दिया। हम सबने भी नानू का पूरा समर्थन किया। केवल बाबी ही था जो कि बाबा पर दांव खेलने को तैयार था। सुबह हुई तो बाबा की अन्य बिमारी उस पर हावी होने लगी। गाड़ी रोकी, जगह देखी…… और फिर गाड़ी चलाई। गाड़ी में किसी को एसी चलने से परेशानी थी कि किसी को न चलने से। गाड़ी का शीशा खुलना और बंद होना भी कई बार बहस की वजह बना।
बारात पहुंची। निकाह पढ़ा। खाना खाया। थोड़े सोये। बारात वापसी के लिए चल पड़ी। शादी केवल इतनी ही थी।
एक बार फिर रात हो चुकी थी। यूपी का इलाका। यहां जगह-जगह लोग सड़क के दोनों और रस्सियाँ पकड़ कर बैठे थे ताकि किसी पैदल या मोटर साइकिल सवार को गिराकर उसे लूटा जा सके। इतना खतरनाक माहौल मैंने कभी पहले नहीं देखा था। अब बस एक ही चीज़ दिमाग में थी कि जल्दी से घर पहुंचा जाए। लेकिन गाड़ी ड्राइवर कुछ और ही ठाने बैठा था। वो छोटे रास्ते से न ले जाकर हमें आगरा से घुमाते हुए ले जाना चाहता था। मीटर घूमता और उसका पैसा बनता। पैसा कमाना अच्छी बात है, लेकिन ऐसे !!!!!!!!!
यहां हमारे सुहैल का गुस्सा फूट गया। डेढ़ फुट ने ढार्इ फुट की गर्दन पकड़ ली और लगा प्रवचन सुनाने। इतने सारे लड़कों को देखकर दोनों गाडि़यों के ड्राइवरों की तिजोरी बन गर्इ। लग रहा था कि इतना सब होने के बाद हमारी गाड़ी का ड्राईवर चुप होकर गाड़ी चलाएगा। लेकिन मैंने पहले ही कहा कि वो अफज़ाल से भी बड़ा वाला था। उसके बोल बच्चन अभी भी चालू थे। अब कसमें खा रहा था कि आज से ही ड्राईवरी छोड़ देगा। क्योंकि इससे पहले उससे किसी ने ”तू करके बात नहीं की थी। धन्य हो। सड़क पर ट्रैफिक बहुत था। गाड़ी चला पाना उस के बूते की बात नहीं थी। इसलिए हमने नानू को उसके साथ ही बैठा रखा था। लगभग तीन या चार किलोमीटर तक लगे जाम में नानू की बदौलत ही हम वापिस आ सके। वरना ये रात भी वहीं काली होने वाली थी।
कुछ भी कहों लेकिन ये पूरा सफर रोमांचकारी था। ऐसी-ऐसी परिसिथतियां देखी कि भाई साब…… शुक्र इस बात का है कि हम जिंदा बैठे हैं।
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……क्या मज़ाल तेरी मर्ज़ी के आगे बन्दों की चल जाएगी
ताने जो ऊँगली तू कठपुतली की चाल बदल जाएगी……..
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