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सुबह के ५ बज रहे थे । सूरज ने भी धीरे-धीरे दस्तक देनी शुरु कर दी थी। हल्की सर्द हवाएं भी ठिठुरने पर मजबूर कर रही थीं । इतने में ही कुछ लोगों ने हमारी जीप को रुकने का इशारा किया और प्रति व्यक्ति टैक्स के रुप में तीन रुपए मांगे । ‘इन्सान पर टैक्स ! सुनने में थोडा अजीब लगेगा पर यह सच है ।
हालांकि मैं यहां इंसानों पर लगने वाले टैक्स की बात नहीं करने वाला हूं । मैं आपको भारत के एक ऐसे पर्यटक स्थल के बारे में बताने वाला हूं , जहां पर्यटक अभी शायद कम ही पहुंचे हैं । तभी तो टूरिस्ट प्लेस में ठहरने के लिए केवल पांच होटल ही हैं । हां दो जंगल रिसॉर्ट का सहारा जरुर है । जो इस जगह पर ठहरने का मजा दोगुना कर देते हैं । १० हजार से भी कम जनसंख्या वाली यह जगह एक बार आने के बाद आपको दोबारा आने के लिए मजबूर जरुर कर देगी ।
‘ लैंसडाउन !ङ्क कोटद्वार से ४१ किलोमीटर ऊपर उत्तराखंड स्थित यह जगह पूरी तरह से गढवाल राइफल्स के हवाले है । इस जगह की देखरेख का जिम्मा भी गढवाल राइफल्स के पास है । सेना अपने अनुशासन के लिए विख्यात है ही । और इसका अंदाजा लैंसडाउन के रखरखाव को देखकर लगाया जा सकता है । गढवाल राइफल्स के जवानों को यहां स्थित भुल्ला ताल की सफाई करते देख समझ आता है कि क्यों यहां अन्य टूरिस्ट प्लेस से कम गंदगी है ।
अब जरा बात की जाए यहां के सुकून भरे माहौल की । शहर की दौडभाग से दूर इस जगह में गजब की शांति है । गा‹िडयों के धुएं और आवाज से दूर आप यहां किसी और दुनियां में खो जाएंगे। या फिर इसी दुनियां में रच बस जाना चाहेंगे । घने जंगल और पहा‹िडयों से घिरे लैंसडौन की हर बात निराली है । यहां की हर चीज में शायद सेना का प्रभाव आ ही जाता है । रात की गहरी नींद के बाद सुबह आप सेना की गोलीबारी की आवाज भी सुन सकते हैं । इन आवाजों से डरने की कोई जरुरत नहीं है । क्योंकि ये गढवाल राईफल्स के जवानों की रेगूलर ट्रेqनग में चलाई जाने वाली गोलियों की आवाज है । वैसे भी जिस जगह की देखरेख गढवाल राईफल्स कर रही हो वहां डरने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता ।
यहां गढवाल राइफल्स सेंटर के परेड ग्राउंड में युद्ध स्मारक आगंतुकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है । मोटी ओक और नीले देवदार के जंगलों से घिरा, लैंसडाउन प्राकृतिक सुंदरता की अद्भुत छटा बिखेरता है । यहां गर्मियों में मौसम अच्छा रहता है, सर्दियां बेहद सर्द हैं । जनवरी और फरवरी के महीने में लैंसडाउन में बर्फबारी भी होती है । इस समय भी यहां प्रकृति का मजा लिया जा सकता है । पतझड के मौसम में स्थानीय लोग यहां ‘शरदोत्सव भी मनाते हैं । वैसे स्थानीय भाषा में लैंसडाउन को ‘कालोडांडा (अर्थात् कालेपहाड) भी कहा जाता है । यहाँ गौर करने वाली बात ये है की आपको यहाँ बिजली वाले होर्डिंग (तकनीकी नाम नहीं जानता क्योंकि इस पर मेरा ध्यान मेरे मित्र ने डाला था जो इसी से जुड़ा काम करता है ) नहीं दिखाई देंगे. यहाँ अधिकांश विज्ञापन हाथ से ही लिखे गएँ हैं, मेरे मित्र ने बताया क बिजली वाले विज्ञापन प्रदुषण फैलाते है.
खैर मैंने अपने दोस्तों के साथ यहां दो दिन बिताए और ऐसा लग रहा है कि जैसे मैं बस यहीं का हो कर रह गया हूं । हर शाम डूबते सूरज ने मुझे ये अहसास कराया कि मैं
यहां का नहीं हूं । मैं उसे देखूं और फिर से उगने का इंतजार करुं । टूरिस्टों की भीड से दूर इस जगह के लिए मैं हमेशा दुआं करुंगा कि लैंसडाउन ऐसे ही छिपा रहे । लोगों की नजरों से दूर । क्योंकि भीड के लिए शायद ये जगह नहीं बनी है । और अगर भीड यहां पहुंची तो एक और मनोहारी जगह टूरिज्म के नाम पर दम तोड देगी ।
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